शनिवार, 21 अगस्त 2010

पारदर्शी आत्मा

जब मैं समाज में आता हूँ,
तो अपनी आत्मा पर,
वह शरीर प्रक्षेपित कर लेता हूँ,
जिसमें तुम्हारा कोई अंश नहीं होता;
और लोग कहते हैं मैं इतना खुश कैसे रह लेता हूँ,
इस तनाव भरी जिन्दगी में;

क्या करूँ?
मैं लोगों को अपनी आत्मा नहीं दिखा सकता,
क्योंकि मेरी आत्मा,
तुम्हारी निश्छल आत्मा में घुलकर,
पारदर्शी हो गई है,
और समाज में अभी इतनी साहस नहीं आया है,
कि वह पारदर्शी आत्माओं के पार का सच सह सके।

1 टिप्पणी:

  1. अब आपके बीच आ चूका है ब्लॉग जगत का नया अवतार www.apnivani.com
    आप अपना एकाउंट बना कर अपने ब्लॉग, फोटो, विडियो, ऑडियो, टिप्पड़ी लोगो के बीच शेयर कर सकते हैं !
    इसके साथ ही www.apnivani.com पहली हिंदी कम्युनिटी वेबसाइट है| जन्हा आपको प्रोफाइल बनाने की सारी सुविधाएँ मिलेंगी!

    धनयवाद ...
    आप की अपनी www.apnivani.com टीम

    जवाब देंहटाएं

जो मन में आ रहा है कह डालिए।