रविवार, 17 अप्रैल 2011

ग़ज़ल: काश यादों को करीने से लगा पाता मैं

काश यादों को करीने से लगा पाता मैं
तेरी यादों के सभी रैक हटा पाता मैं ॥१॥

एक लम्हा जिसे हम दोनों ने हर रोज जिया
काश उस लम्हे की तस्वीर बना पाता मैं ॥२॥

मेरे कानों में पढ़ा प्रेम का कलमा तुमने
काश अलफ़ाज़ वो सोने से मढ़ा पाता मैं ॥३॥

एक वो पन्ना जहाँ तुमने मैं हूँ गैर लिखा
काश उस पन्ने का हर लफ़्ज़ मिटा पाता मैं ॥४॥

दिल की मस्जिद में जिसे रोज पढ़ा करता हूँ
आयतें काश वो तुझको भी सुना पाता मैं ॥५॥

14 टिप्‍पणियां:

  1. दिल की मस्जिद में जिसे रोज पढ़ा करता हूँ
    आयतें काश वो तुझको भी सुना पाता मैं ॥५॥

    बहुत सुन्दर ...अच्छी रचना

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  2. एक लम्हा जिसे हम दोनों ने हर रोज जिया
    काश उस लम्हे की तस्वीर बना पाता मैं ....
    आदरणीय भाई जी किस शेर को कोट करूं यहाँ... हर शेर जानलेवा है हर अल्फाज़ खंजर है मुरीद बना लिया आपकी इस मोहक और दर्द से भरी ग़ज़ल ने .

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  3. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 19 - 04 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  4. बहुत ही सुंदर गज़ल भाई धर्मेन्द्र जी बधाई

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  5. एक लम्हा जिसे हम दोनों ने हर रोज जिया
    काश उस लम्हे की तस्वीर बना पाता मैं
    ... shabd shabd tasweer hi to hai , bahut hi badhiyaa

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  6. एक वो वर्क़ जहाँ तुमने मैं हूँ गैर लिखा
    काश उस वर्क़ का हर लफ़्ज़ मिटा पाता मैं ॥४॥

    कुछ लफ़्ज कभी नही हटाये जा सकते…………बेहतरीन गज़ल्।

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  7. बहुत अच्छी ग़ज़ल धर्मेन्द्र जी !
    हर शेर बेहतरीन ...

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  8. आयतें काश वो सुना पाता मैं ...
    सुना तो रही है कविता ...
    खूबसूरत भावाभिव्यक्ति !

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  9. आदरणीय संगीता जी, आनंद जी, जयकृष्ण राय जी, रश्मि जी, वन्दना जी, सुषमा जी, सुरेन्द्र जी, अनामिका जी, बाबुषा जी और गीत जी ग़ज़ल पसंद करने के लिए आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद।

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  10. bahut ही खुबसूरत ग़ज़ल कही आपने... सादर...

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जो मन में आ रहा है कह डालिए।