गुरुवार, 11 अगस्त 2016

ग़ज़ल : तेज़ दिमागों को रोबोट बनाते हैं हम

बह्र : 22 22 22 22 22 22

तेज़ दिमागों को रोबोट बनाते हैं हम
देखो क्या क्या करके नोट बनाते हैं हम

दिल केले सा ख़ुद ही घायल हो जाता है
शब्दों से सीने पर चोट बनाते हैं हम

सिक्का यदि बढ़वाना चाहे अपनी कीमत
झूठे किस्से गढ़कर खोट बनाते हैं हम

नदी बहा देते हैं पहले तो पापों की
फिर पीले कागज की बोट बनाते हैं हम

पाँच वर्ष तक हमीं कोसते हैं सत्ता को
फिर चुनाव में ख़ुद को वोट बनाते हैं हम

शुद्ध नहीं, भाषा को गन्दा कर देते हैं
टाई को जब कंठलँगोट बनाते हैं हम

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