आ मेरे ख़यालों में हाज़िरी लगा दीजै
मन की पाठशाला में मेरा जी लगा दीजै
फिर रही हैं आवारा ये इधर उधर सब पर
आप इन निगाहों की नौकरी लगा दीजै
दिल की कोठरी में जब आप घुस ही आये हैं
द्वार बंद कर फौरन सिटकिनी लगा दीजै
स्वाद भी जरूरी है अन्न हज़्म करने को
प्यार की चपाती में कुछ तो घी लगा दीजै
आग प्यार की बुझने गर लगे कहीं ‘सज्जन’
फिर पुरानी यादों की धौंकनी लगा दीजै
दिल की कोठरी में जब आप घुस ही आये हैं
द्वार बंद कर फौरन सिटकिनी लगा दीजै
स्वाद भी जरूरी है अन्न हज़्म करने को
प्यार की चपाती में कुछ तो घी लगा दीजै
आग प्यार की बुझने गर लगे कहीं ‘सज्जन’
फिर पुरानी यादों की धौंकनी लगा दीजै
वाह ... गज़ब के शब्दों का प्रयोग ... मजा आ गया इस ग़ज़ल का ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय नासवा जी
हटाएंNice Poem, Thanks for share this.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंआपकी लिखी हुई गजल हमेशा ही बहुत बढ़िया होती हैं.
जवाब देंहटाएंkeep it up.............
शुक्रिया
हटाएंवाह, बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ओंकार जी
हटाएंआपकी लिखी हुई गजल हमेशा ही बहुत बढ़िया होती हैं.
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