शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

समय

काश! मैं तुम्हारे साथ प्रकाश की गति से चल सकता,
तो वह एक पल,
जब तुमने मेरी आँखों में झाँका था,
आज भी वहीं थमा होता।

काश! मेरे प्यार में,
कृष्ण विवर जैसा आकर्षण होता,
तो बहता समय आज भी वहीं ठहरा होता,
मैं तुम्हारी आँखों में खुद को देखता रहता,
और जब तक मेरी पलकें झपकतीं,
समय का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता,
और हमारा अस्तित्व मिलकर,
आदि ऊर्जा में बदल जाता,
फिर से सृष्टि का निर्माण करने के लिए।

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