सोमवार, 24 मई 2010

जमकर आज नहायेगा ये।

कविता वाचक्नवी जी ने एक कविता कार्यशाला का आयोजन किया था,
जिसमें जल के ऊपर छलांग लगाते एक बाघ पर कविता लिखनी थी।
उसमें मैंने यह गीत लिखा।
इस कार्यशाला के बारे में विस्तृत चर्चा आप नीचे दी गई कड़ी पर देख सकते हैं।

http://www.srijangatha.com/bloggatha24_2k10


जमकर आज नहायेगा ये।

जंगल में तो लगी आग है,
जान बचा कर भगा बाघ है,
मछली संग बतियायेगा ये,
जमकर आज नहायेगा ये।

बहुत दिनों से ढूँढ रह था,
पानी का ना कहीं पता था,
गोते आज लगायेगा ये,
जमकर आज नहायेगा ये।

बाघिन बोली थी गुस्साकर,
गड्ढे में मुँह आओ धोकर,
तन-मन धोकर जायेगा ये,
जमकर आज नहायेगा ये।

फिर जाने कब पाये पानी,
जाने कब तक है जिन्दगानी,
रो जंगल में जायेगा ये,
जमकर आज नहायेगा ये।

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