शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

बूढ़ा घर और दीपावाली

गाँव का बूढ़ा घर
जर्जर
जीवन की कुछेक आखिरी साँसें
ले रहा है
रोज गिनता है
दीपावाली आने में
बचे हुए दिन
अब तो दीपावली में ही
आते हैं
उसके आँगन में खेलकर
बड़े हुए बच्चे
अपने पुश्तैनी घर में
दीपक जलाने
ताकि उस घर पर उनका हक
बना रहे
और बूढ़ा घर
किसी बेघर को आश्रय न दे दे।

2 टिप्‍पणियां:

  1. हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई
    जब सब हैं हम भाई-भाई
    तो फिर काहे करते हैं लड़ाई
    दीवाली है सबके लिए खुशिया लाई
    आओ सब मिलकर खाए मिठाई
    और भेद-भाव की मिटाए खाई

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