सोमवार, 28 नवंबर 2016

ग़ज़ल : उतर जाए अगर झूठी त्वचा तो

बह्र : १२२२ १२२२ १२२

उतर जाए अगर झूठी त्वचा तो।
सभी हैं एक से साबित हुआ, तो।

शरीअत में हुई झूठी कथा, तो।
न मर कर भी दिखा मुझको ख़ुदा, तो।

वो दोहों को ही दुनिया मानता है,
कहा गर जिंदगी ने सोरठा, तो।

समझदारी है उससे दूर जाना,
अगर हो बैल कोई मरखना तो।

जिसे मशरूम का हो मानते तुम,
किसी मज़लूम का हो शोरबा, तो।

न तुम ज़िन्दा न तुममें रूह ‘सज्जन’
किसी दिन गर यही साबित हुआ, तो।

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