सोमवार, 26 जुलाई 2010

चट्टान का टुकड़ा

पहाड़ से टूटकर चट्टान का एक बड़ा टुकड़ा,
नदी में जा गिरा,
नदी की धारा उसे तब तक पटकती रही,
जब तक कि उसके टुकड़े टुकड़े नहीं हो गये,
वो छोटे छोटे टुकड़े धारा में बहते रहे,
चट्टानों से टकराते रहे,
दर्द से चीखते रहे,
पानी को कोसते रहे और गोल गोल हो गये,
फिर नदी ने उन्हें एक किनारे डाल दिया,
दूसरे दिन नदी किनारे से एक बच्चा गुजरा,
उसे वो चिकने, रंग बिरंगे टुकड़े अच्छे लगे,
उन्हें उठा कर घर ले गया,
उसकी माँ ने उन पत्थरों को देखा,
और उन्हें उठाकर पूजाघर में रख दिया,
अब वो पत्थर रोज पूजे जाते हैं,
क्योंकि जो उन्होंने सहा है,
वह सहकर बहुत कम पत्थर,
पूजाघर तक पहुँच पाते हैं,
ज्यादातर तो चूर चूर होकर,
मिट्टी में मिल जाते हैं।

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