घास कहीं भी उग आती है
जहाँ भी उसे काम चलाऊ पोषक तत्व मिल जाँय,
इसीलिए उसे बेशर्म कहा जाता है,
इतनी बेइज्जती की जाती है;
घास का कसूर ये है
कि उसे जानवरों को खिलाया जाता है
इसीलिए उसकी बेइज्जती करने के लिए
मुहावरे तक बना दिये गए हैं
कोई निकम्मा हो तो उसे कहते हैं
वो घास छील रहा है;
जिस दिन घास असहयोग आन्दोलन करेगी
उगना बन्द कर देगी
और लोगों को अपने हिस्से का खाना
जानवरों को देना पड़ेगा
अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिए;
उस दिन पता चलेगा सबको घास का महत्व
उसी दिन बदलेगी लोगों की सोच
और सदियों से चले आ रहे मुहावरे।
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
bahut khoob
जवाब देंहटाएंhttp://sanjaykuamr.blogspot.com/
apki har bate yatharthparak hoti hai ........bahut hi achchha likhte hai aap.........badhai
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