बह्र : 2122 2122 2122 212
कुछ पलों में नष्ट हो जाती युगों की सूचना
चन्द पल में सैकड़ों युग दूर जाती कल्पना
स्वप्न है फिर सत्य है फिर है निरर्थकता यहाँ
और ये जीवन उसी में अर्थ कोई ढूँढ़ना
हुस्न क्या है एक बारिश जो कभी होती नहीं
इश्क़ उस बरसात में तन और मन का भीगना
ग़म ज़ुदाई का है क्या सुलगी हुई सिगरेट है
याद के कड़वे धुँएँ में दिल स्वयं का फूँकना
प्रेम और कर्तव्य की दो खूँटियों के बीच में
जिन्दगी की अलगनी पर शाइरी को साधना
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
मंगलवार, 13 सितंबर 2016
शनिवार, 10 सितंबर 2016
ग़ज़ल : धूप से लड़ते हुए यदि मर कभी जाता है वो
बह्र : २१२२ २१२२ २१२२ २१२
धूप से लड़ते हुए यदि मर कभी जाता है वो
रात रो देते हैं बच्चे और जी जाता है वो
आपको जो नर्क लगता, स्वर्ग के मालिक, सुनें
बस वहीं पाने को थोड़ी सी खुशी जाता है वो
जिन की रग रग में बहे उसके पसीने का नमक
आज कल देने उन्हीं को खून भी जाता है वो
वो मरे दिनभर दिहाड़ी के लिए, तू ऐश कर
पास रख अपना ख़ुदा ऐ मौलवी, जाता है वो
खौलते कीड़ों की चीखें कर रहीं पागल उसे
बालने सब आज धागे रेशमी, जाता है वो
धूप से लड़ते हुए यदि मर कभी जाता है वो
रात रो देते हैं बच्चे और जी जाता है वो
आपको जो नर्क लगता, स्वर्ग के मालिक, सुनें
बस वहीं पाने को थोड़ी सी खुशी जाता है वो
जिन की रग रग में बहे उसके पसीने का नमक
आज कल देने उन्हीं को खून भी जाता है वो
वो मरे दिनभर दिहाड़ी के लिए, तू ऐश कर
पास रख अपना ख़ुदा ऐ मौलवी, जाता है वो
खौलते कीड़ों की चीखें कर रहीं पागल उसे
बालने सब आज धागे रेशमी, जाता है वो
मंगलवार, 30 अगस्त 2016
ग़ज़ल : ऐसा फल अच्छा होता है
बह्र : २२ २२ २२ २२ सब खाते हैं इक बोता है ऐसा फल अच्छा होता है पूँजीपतियों के पापों को कोई तो छुपकर धोता है इक दुनिया अलग दिखी उसको जिसने भी मारा गोता है हर खेत सुनहरे सपनों का झूठे वादों ने जोता है महसूस करे जो जितना, वो, उतना ही ज़्यादा रोता है मेरे दिल का बच्चा जाकर यादों की छत पर सोता है भक्तों के तर्कों से ‘सज्जन’ सच्चा तो केवल तोता है |
गुरुवार, 25 अगस्त 2016
ग़ज़ल : आ मेरे ख़यालों में हाज़िरी लगा दीजै
बह्र : 212 1222 212 1222
आ मेरे ख़यालों में हाज़िरी लगा दीजै
मन की पाठशाला में मेरा जी लगा दीजै
फिर रही हैं आवारा ये इधर उधर सब पर
आ मेरे ख़यालों में हाज़िरी लगा दीजै
मन की पाठशाला में मेरा जी लगा दीजै
फिर रही हैं आवारा ये इधर उधर सब पर
आप इन निगाहों की नौकरी लगा दीजै
दिल की कोठरी में जब आप घुस ही आये हैं
द्वार बंद कर फौरन सिटकिनी लगा दीजै
स्वाद भी जरूरी है अन्न हज़्म करने को
प्यार की चपाती में कुछ तो घी लगा दीजै
आग प्यार की बुझने गर लगे कहीं ‘सज्जन’
फिर पुरानी यादों की धौंकनी लगा दीजै
दिल की कोठरी में जब आप घुस ही आये हैं
द्वार बंद कर फौरन सिटकिनी लगा दीजै
स्वाद भी जरूरी है अन्न हज़्म करने को
प्यार की चपाती में कुछ तो घी लगा दीजै
आग प्यार की बुझने गर लगे कहीं ‘सज्जन’
फिर पुरानी यादों की धौंकनी लगा दीजै
शनिवार, 13 अगस्त 2016
नवगीत : सब में मिट्टी है भारत की
किसको पूजूँ
किसको छोड़ूँ
सब में मिट्टी है भारत की
पीली सरसों या घास हरी
झरबेर, धतूरा, नागफनी
गेहूँ, मक्का, शलजम, लीची
है फूलों में, काँटों में भी
सब ईंटें एक इमारत की
भाले, बंदूकें, तलवारें
गर इसमें उगतीं ललकारें
हल बैल उगलती यही जमीं
गाँधी, गौतम भी हुए यहीं
बाकी सब बात शरारत की
इस मिट्टी के ऐसे पुतले
जो इस मिट्टी के नहीं हुए
उनसे मिट्टी वापस ले लो
पर ऐसे सब पर मत डालो
अपनी ये नज़र हिकारत की
किसको छोड़ूँ
सब में मिट्टी है भारत की
पीली सरसों या घास हरी
झरबेर, धतूरा, नागफनी
गेहूँ, मक्का, शलजम, लीची
है फूलों में, काँटों में भी
सब ईंटें एक इमारत की
भाले, बंदूकें, तलवारें
गर इसमें उगतीं ललकारें
हल बैल उगलती यही जमीं
गाँधी, गौतम भी हुए यहीं
बाकी सब बात शरारत की
इस मिट्टी के ऐसे पुतले
जो इस मिट्टी के नहीं हुए
उनसे मिट्टी वापस ले लो
पर ऐसे सब पर मत डालो
अपनी ये नज़र हिकारत की
गुरुवार, 11 अगस्त 2016
ग़ज़ल : तेज़ दिमागों को रोबोट बनाते हैं हम
बह्र : 22 22 22 22 22 22
तेज़ दिमागों को रोबोट बनाते हैं हम
देखो क्या क्या करके नोट बनाते हैं हम
दिल केले सा ख़ुद ही घायल हो जाता है
शब्दों से सीने पर चोट बनाते हैं हम
सिक्का यदि बढ़वाना चाहे अपनी कीमत
झूठे किस्से गढ़कर खोट बनाते हैं हम
नदी बहा देते हैं पहले तो पापों की
फिर पीले कागज की बोट बनाते हैं हम
पाँच वर्ष तक हमीं कोसते हैं सत्ता को
फिर चुनाव में ख़ुद को वोट बनाते हैं हम
शुद्ध नहीं, भाषा को गन्दा कर देते हैं
टाई को जब कंठलँगोट बनाते हैं हम
तेज़ दिमागों को रोबोट बनाते हैं हम
देखो क्या क्या करके नोट बनाते हैं हम
दिल केले सा ख़ुद ही घायल हो जाता है
शब्दों से सीने पर चोट बनाते हैं हम
सिक्का यदि बढ़वाना चाहे अपनी कीमत
झूठे किस्से गढ़कर खोट बनाते हैं हम
नदी बहा देते हैं पहले तो पापों की
फिर पीले कागज की बोट बनाते हैं हम
पाँच वर्ष तक हमीं कोसते हैं सत्ता को
फिर चुनाव में ख़ुद को वोट बनाते हैं हम
शुद्ध नहीं, भाषा को गन्दा कर देते हैं
टाई को जब कंठलँगोट बनाते हैं हम
बुधवार, 20 जुलाई 2016
ग़ज़ल : सब आहिस्ता सीखोगे
जल्दी में क्या सीखोगे
सब आहिस्ता सीखोगे
इक पहलू ही गर देखा
तुम बस आधा सीखोगे
सबसे हार रहे हो तुम
सबसे ज़्यादा सीखोगे
सबसे ऊँचा, होता है,
सबसे ठंडा, सीखोगे
सूरज के बेटे हो तुम
सब कुछ काला सीखोगे
सीखोगे जो ख़ुद पढ़कर
सबसे अच्छा सीखोगे
पहले प्यार का पहला ख़त
पुर्ज़ा पुर्ज़ा सीखोगे
ख़ुद को पढ़ लोगे जिस दिन
सारी दुनिया सीखोगे
हाकिम बनते ही ‘सज्जन’
सब कुछ खाना सीखोगे
सब आहिस्ता सीखोगे
इक पहलू ही गर देखा
तुम बस आधा सीखोगे
सबसे हार रहे हो तुम
सबसे ज़्यादा सीखोगे
सबसे ऊँचा, होता है,
सबसे ठंडा, सीखोगे
सूरज के बेटे हो तुम
सब कुछ काला सीखोगे
सीखोगे जो ख़ुद पढ़कर
सबसे अच्छा सीखोगे
पहले प्यार का पहला ख़त
पुर्ज़ा पुर्ज़ा सीखोगे
ख़ुद को पढ़ लोगे जिस दिन
सारी दुनिया सीखोगे
हाकिम बनते ही ‘सज्जन’
सब कुछ खाना सीखोगे
सोमवार, 18 जुलाई 2016
कविता : तुम मुझसे मिलने जरूर आओगी
तुम मुझसे मिलने जरूर आओगी
जैसे धरती से मिलने आती है बारिश
जैसे सागर से मिलने आती है नदी
मिलकर मुझमें खो जाओगी
जैसे धरती में खो जाती है बारिश
जैसे सागर में खो जाती है नदी
मैं हमेशा अपनी बाहें फैलाये तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा
जैसे धरती करती है बारिश की
जैसे सागर करता है नदी की
तुमको मेरे पास आने से
कोई ताकत नहीं रोक पाएगी
जैसे अपनी तमाम ताकत और कोशिशों के बावज़ूद
सूरज नहीं रोक पाता अपनी किरणों को
जैसे धरती से मिलने आती है बारिश
जैसे सागर से मिलने आती है नदी
मिलकर मुझमें खो जाओगी
जैसे धरती में खो जाती है बारिश
जैसे सागर में खो जाती है नदी
मैं हमेशा अपनी बाहें फैलाये तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा
जैसे धरती करती है बारिश की
जैसे सागर करता है नदी की
तुमको मेरे पास आने से
कोई ताकत नहीं रोक पाएगी
जैसे अपनी तमाम ताकत और कोशिशों के बावज़ूद
सूरज नहीं रोक पाता अपनी किरणों को
मंगलवार, 28 जून 2016
ग़ज़ल : ऐसे लूटा गया साँवला कोयला
बह्र : २१२ २१२ २१२ २१२
था हरा औ’ भरा साँवला कोयला
हाँ कभी पेड़ था, साँवला कोयला
वक्त से जंग लड़ता रहा रात दिन
इसलिए हो गया साँवला, कोयला
चन्द हीरे चमकते रहें इसलिये
जिन्दगी भर जला साँवला कोयला
खा के ठंडी हवा जेठ भर हम जिये
जल के विद्युत बना साँवला कोयला
हाथ सेंका किये हम सभी ठंड भर
और जलता रहा साँवला कोयला
चंद वर्षों में ये ख़त्म होने को है
ऐसे लूटा गया साँवला कोयला
था हरा औ’ भरा साँवला कोयला
हाँ कभी पेड़ था, साँवला कोयला
वक्त से जंग लड़ता रहा रात दिन
इसलिए हो गया साँवला, कोयला
चन्द हीरे चमकते रहें इसलिये
जिन्दगी भर जला साँवला कोयला
खा के ठंडी हवा जेठ भर हम जिये
जल के विद्युत बना साँवला कोयला
हाथ सेंका किये हम सभी ठंड भर
और जलता रहा साँवला कोयला
चंद वर्षों में ये ख़त्म होने को है
ऐसे लूटा गया साँवला कोयला
सोमवार, 30 मई 2016
ग़ज़ल : वो यहाँ बेलिबास रहती है
बह्र : २१२२ १२१२ २२
बन के मीठी सुवास रहती है
वो मेरे आसपास रहती है
उसके होंठों में झील है मीठी
मेरे होंठों में प्यास रहती है
आँख ने आँख में दवा डाली
अब जुबाँ पर मिठास रहती है
मेरी यादों के मैकदे में वो
खो के होश-ओ-हवास रहती है
मेरे दिल में न झाँकिये साहिब
वो यहाँ बेलिबास रहती है
बन के मीठी सुवास रहती है
वो मेरे आसपास रहती है
उसके होंठों में झील है मीठी
मेरे होंठों में प्यास रहती है
आँख ने आँख में दवा डाली
अब जुबाँ पर मिठास रहती है
मेरी यादों के मैकदे में वो
खो के होश-ओ-हवास रहती है
मेरे दिल में न झाँकिये साहिब
वो यहाँ बेलिबास रहती है
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