शनिवार, 17 जनवरी 2015

ग़ज़ल : एक फूल को सौ सौ काँटे

बह्र : २२ २२ २२ २२

क्या जोड़े तू, कैसे बाँटे
एक फूल को सौ सौ काँटे

अरबों भक्तों की दुनिया में
कुछ पूँजीपति कैसे छाँटे

आशिक तेरे दोनों हैं पर
इसको चुम्बन उसको चाँटे

धरती भी तो आखिर माँ है
सबको चूमे सबको डाँटे

ले तेरा तुझको अर्पित है
दुख, लाचारी, काँटे, चाँटे

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